Monday 25 September 2017

विदेश में छुपे दुश्मनों को ऐसे निशाना बनाती है मोसाद, भारत भी सीखे

जेहादी जॉन- ये शख्स आईएसआईएस के आतंक का पर्याय बन गया था। पश्चिम मुल्कों के बहुत से नागरिकों का सिर कलम कर वो चुनौती बन गया था, लेकिन नवंबर 2015 में अमेरिका ने ड्रोन हमले में उसे उस वक्त मार गिराया गया जब वो आईएसआईएस की राजधानी रक्का में एक कार में बैठने जा रहा था।

जेहादी जॉन को जैसे टार्गेटेड किलिंग ऑपरेशन में मारा गया। ये ओवर्ट ऑपरेशन था। ताकतवर अमेरिका सीरिया से लेकर पाकिस्तान तक घर में घुसकर दुश्मनों को मारता है। लेकिन, जानकारों के मुताबिक भारत को इजरायल जैसे कोवर्ट टार्गेटेड किलिंग ऑपरेशन करने की जरूरत है।

साल 1972 में म्यूनिख ओलंपिक के दौरान फिलिस्तानी आतंकी गुट ब्लैक सितंबर ने 11 इजरायली खिलाड़ियों को मौत के घाट उतार दिया था। जवाब में मोसाद और अल सायरेत कमांडो की मिली जुली टीम ने 1972 से 1988 के बीच 20 साल के दौरान रोम से लेबनान तक ब्लैक सितंबर के आतंकियों को चुन-चुन कर चेहरा पहचान-पहचान कर मार डाला।
उनका पहला शिकार पेरिस में छुपा आतंकी मुहम्मद अल हमसारी था। मोसाद के जासूसों ने हमसारी के घर में घुसकर उसके टेलीफोन में बम लगा दिया था। हमसारी के घर लौटने पर जैसे ही फोन की घंटी बजी। हमसारी ने जैसे ही चोंगा उठाया, वैसे ही एक धमाके ने उसकी जान ले ली।

सवाल ये है कि दर्द के बदले दर्द देने का ये तरीका क्या भारत नहीं अपना सकता? शहीदों की कुर्बानियों से साफ है कि हमारे पास ऐसे ऑपरेशन कर सकने वाले बहादुरों की कमी नहीं है, फिर भी दाऊद जैसा एक आतंकी डॉन भी हमें जब तब दर्द देने से बाज नहीं आता।

एक ही उपाय है के अगर दाऊद चाहिए तो कोई न कोई ऑपरेशन करना पड़ेगा। आपको मानसिकता बदलनी पड़ेगी। ये मानना पड़ेगा अमेरिका इजराइल की तरह के जहां कही भी हो दुश्मन उसे पकड़ना पड़ेगा। ओसामा की तरह कॉवर्ट ऑपरेशन करना पड़ेगा।

लेकिन, सच ये है कि हम बेबी और डी-डे जैसी बॉलीवुड फिल्मों में ही हाफिज और दाऊद को वापस भारत लाकर खुश होते रहते हैं, जबकि इजरायल सचमुच दूसरे मुल्कों में छुपे अपने दुश्मनों को पकड़ कर ला चुका है।

द्वितीय विश्वयुद्ध में हजारों लाखों यहूदियों को यातना कैंप में मारने वाले एडोल्फ आइखमन जंग खत्म होने के बाद लापता हो गया था, लेकिन करीब एक दशक बाद 1960 में आइखमन को मोसाद ने अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के पास खोज निकाला। वो एक कार फैक्ट्री में फोरमैन बन गया था।

कई महीनों की निगरानी के बाद 11 मई 1960 को आइखमन का तब अपहरण कर लिया गया जब वो बस से उतर कर अपने घर की तरफ जा रहा था। 21 मई 1960 को नीम बेहोशी की हालत में आइखमैन को एक प्रतिनिधि मंडल का सदस्य बताकर इजरायल जाने वाले जहाज में बैठा दिया गया। इजरायल पहुंचने पर आइखमन पर मुकद्दमा चला और उसे सजा ए मौत दी गई।

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